महाविद्यालय का परिचय
शिक्षा का ध्येय है -'पूर्ण योग', आत्मिक पूर्णता, जो पूर्ण शिक्षा द्वारा ही संभव है। शिक्षा वह है जो मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करने परमात्मा को पाकर आत्मिक पूर्णता प्राप्त करने और अन्तनिर्हित शक्तियों का पूर्ण एवं स्वभाविक विकास करने में योग दे।
यह महाविद्यालय पारीक शिक्षण संस्थाओं का एक अंग है। जिसका प्रारम्भ परम् आदरणीय स्व. श्री झूमर लाल जी एवं स्व. श्री स्वरूप लाल जी तिवाड़ी ने अपनी हवेली पर शिशुओं की शिक्षा-दीक्षा की भावना से प्रेरित होकर एक शिक्षण संस्था निजी हवेली में प्रारम्भ की। इस चटशाला ने प्रारंभिक शाला के रूप में जन्म लेकर संस्कृत पाठशाला के रूप में ख्याति प्राप्त की। 3 फरवरी सन् 1906 ई. से यह संस्था प्रगति की तरफ अग्रसर होती हुई निरन्तर कार्यरत है। 1925-1926 से इस संस्था में हाई स्कूल की कक्षा संचालित की गई तथा 1947 से इण्टर की कक्षाएँ प्रारम्भ की गई। 1 जुलाई सन् 1955 से यह संस्था डिग्री कॉलेज के रूप में प्रारंभ कर दी गई। सन् 1993 में महाविधालय स्नातक से स्नातकोत्तर महाविद्यालय बन गया।
इस तरह पाठशाला शनैः शनैः एक विशालकाय वृक्ष के रूप में पुष्पित पल्लवित हुई एवं वर्तमान में सौरभयुक्त रूप में इस गुलाबी नगरी में स्थित है।
इसी का एक पूर्णरूपेण परिपक्व फल यह एस. एस. जी पारीक स्नाकोत्तर शिक्षा महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना सन् 1965 में तत्कालीन प्राचार्य श्री गोपाललाल जी पुरोहित ने पूर्ण लग्न एवं अपनी क्षमता का उपयोग करते हुए जयपुर, तथा आस-पास के जिलों के सर्वप्रथम शिक्षा महाविद्यालय खुलवाया। श्रीमती एम. ए. शिफसटन इस शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्रथम प्राचार्य थी। वर्तमान में बी. एड में 150 छात्र-छात्राओ की एक इकाई है। महाविद्यालय में एम. एड. में 50 छात्र-छात्राएं अध्धयनरत है। जिसकी राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से कला, वाणिज्य एवं विज्ञान विषयो में सम्बद्धता प्राप्त की।
वर्तमान में प्राचार्य डॉ. प्रमिला दुबे है महाविद्यालय में विभिन्न कोर्स संचालित है वर्तमान में बी.एड में 150 छात्र-छात्राओं की तीन इकाई (50 विद्यार्थी प्रति इकाई) है एम. एड में 50 छात्र-छात्राओं का एक यूनिट संचालित है चार वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम कोर्स में बी.ए बी. एड/ बी.एस.सी एड में 100 छात्र-छात्राएं (एक यूनिट प्रति कोर्स) है।
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